E20 Fuel in India: मोदी सरकार का बड़ा फैसला या आम जनता के लिए नया बोझ?

नमस्कार दोस्तों, मोदी सरकार ने अचानक से देश भर में E20 Fuel in India रोल आउट कर दिया है। इस फ्यूल में 80% पेट्रोल होता है और 20% इथेनॉल। लेकिन हैरानी की बात यह है कि लोगों को कोई ऑप्शन ही नहीं दिया गया है। आप चाहो या ना चाहो आपको अपनी गाड़ी में, अपने टू-व्हीलर में यही डलवाना पड़ेगा। और इससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है कि इस सबका सबसे बड़ा फायदा किसे हुआ है? सरकार में बैठे एक पावरफुल यूनियन मिनिस्टर जिनके दो बेटे इथेनॉल बनाने वाले शुगर प्लांट्स के मालिक हैं। दूसरी तरफ सबसे बड़ा नुकसान इसका हो रहा है आम जनता को। यही कारण है कि इसे सोशल मीडिया पर एक बहुत बड़ा घोटाला कहा जा रहा है। आइए समझते हैं इस E20 फ्यूल की पूरी कहानी।

E20 Fuel in India

केमिकली देखा जाए तो इथेनॉल वही अल्कोहल है जो शराब की बोतलों में मिलती है। यही अल्कोहल एक बायोफ्यूल की तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

अल्कोहल कई फूड आइटम से बनाया जा सकता है — जिन फूड आइटम्स में स्टार्च या शुगर मौजूद होती है उनसे फर्मेंटेशन के जरिए अल्कोहल बनाया जा सकता है। बायोफ्यूल के कॉन्टेक्स्ट में आमतौर पर गन्ना, मक्का और चावल जैसी फसलों का इस्तेमाल किया जाता है। इनमें से गन्ना (sugarcane) सबसे प्रभावी है क्योंकि शुगरकेन की क्रॉप में प्रति एकड़ सबसे अधिक शुगर यील्ड होती है।

E20 Fuel in India

इथेनॉल पेट्रोल में अच्छी तरह मिक्स हो जाता है और यह एक ऑक्सीजनेट की तरह काम करता है जिससे पेट्रोल अच्छे से बर्न होता है। कई रिसर्च पेपर बताते हैं कि इथेनॉल के उपयोग से कुछ प्रकार के प्रदूषण में कमी आती है। नीति आयोग की एक एनालिसिस के मुताबिक गन्ने से बने इथेनॉल से पेट्रोल के मुकाबले 65% कम ग्रीनहाउस गैस एमिशन हो सकता है।

इसके अलावा, क्रूड ऑयल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करती हैं — इथेनॉल देश के अंदर उपलब्ध फसलों से बनता है, जिससे आयात पर निर्भरता और खर्च कम होने की उम्मीद रहती है।

इंडिया में इथेनॉल ब्लेंडिंग का इतिहास और E20 रोल-आउट

भारत में जनवरी 2003 से ही इथेनॉल ब्लेंडेड पेट्रोल बेचा जा रहा है। शुरुआत में टार्गेट सिर्फ 5% था, लेकिन प्रोग्रेस धीरे-धीरे हुई। 2014 तक औसत ब्लेंडिंग सिर्फ ~1.5% तक पहुँची थी।

2014 में सरकार बदली और उसी साल 5% से 10% तक ब्लेंडिंग की सीमा बढ़ा दी गई। बाद में 2018 में 2030 तक 20% ब्लेंडिंग का लक्ष्य रखा गया था, जिसे बाद में प्रीपोन करके 2025 कर दिया गया। मार्च 2025 में सरकार ने यह टार्गेट अचीव करते हुए पूरे देश में E20 फ्यूल लागू कर दिया — यानी 20% इथेनॉल के साथ पेट्रोल का देशव्यापी रोलआउट।

रोल-आउट के बाद झटके और शिकायतें

शुरू में यह कदम सुनने में अच्छा लगता है — स्वदेशी बायोफ्यूल, प्रदूषण में कमी और आयात कम। लेकिन जैसे ही E20 रोल-आउट हुआ, लोगों की शिकायतें आने लग गईं।

उदाहरण — कई लोगों ने बताया कि उनकी गाड़ियों की माइलेज घट गई है, इंजन पर असर पड़ा है और स्पेयर पार्ट्स जल्दी खराब होने लगे हैं।

कहि लोगों का कहना है कि पेट्रोल की कीमतें कम नहीं हुईं जबकि माइलेज गिरने से उनका खर्च बढ़ गया है — इससे उपभोक्ताओं के लिए महंगाई का असर और बढ़ गया।

E20 क्यों कुछ गाड़ियों के लिए समस्या बन रहा है?

इथेनॉल पानी को आकर्षित करता है — इसलिए E20 वाले फ्यूल में पानी के छोटे-छोटे कण जमा हो सकते हैं। पुराने फ्यूल सिस्टम जिनको E20 के हिसाब से डिज़ाइन नहीं किया गया है, उनमें रबर कंपोनेंट्स, पाइप्स और फिल्टर्स को नुकसान हो सकता है।

इथेनॉल का एनर्जी डेंसिटी पेट्रोल से कम होता है — इसलिए जितना अधिक इथेनॉल, उतनी कम एनर्जी और उतनी ही कम माइलेज। रिपोर्ट्स के अनुसार:

  • कैलिब्रेटेड (E20-compliant) गाड़ियों में माइलेज ड्रॉप 1–2% तक बताई गई है।
  • अन्य पुरानी/अनकंप्लायंट गाड़ियों में माइलेज 7% तक या इससे भी अधिक गिर सकता है — कुछ सर्वे में यूजर्स ने 10% से ज्यादा ड्रॉप की रिपोर्ट की है।

कुछ यूजर्स ने यह भी बताया कि फ्यूल सिस्टेम के नीडल/कार्बोरेटर भर गए, स्टार्टिंग की समस्या हुई, और फ्यूल पंप/इंजेक्टर पर असर पड़ा।

क्या गाड़ियां E20 के लिए तैयार थीं? और किट्स का खर्च

इंडियन मार्केट में अब भी बड़ी संख्या में E5 या E10 कंप्लायंट गाड़ियाँ हैं; E20-compliant गाड़ियाँ हाल के वर्षों में ही बननी शुरू हुईं। कई कंपनियों ने 2023 से E20-ready मॉडल लॉन्च किए, पर पुरानी गाड़ियाँ तुरंत अपडेट नहीं हो सकतीं।

सरकार का तर्क है कि कुछ रबर पार्ट्स और कम्पोनेंट बदलकर E20 को संभाला जा सकता है। पर कॉस्ट भिन्न हो सकती है — उदाहरण के लिए:

  • Maruti Suzuki की E20 किट कीमत ~₹6,000 तक बताई जा सकती है।
  • फ्यूल इंजेक्टर बदलने पर ~₹14,000 तक का खर्च।
  • फ्यूल पंप / टैंक जैसी चीजें ₹35,000 तक महंगी हो सकती हैं।

यदि E20 डालने से किसी गाड़ी को नुकसान हुआ और वह मैन्युफैक्चरर के मैन्युअल के निर्देश के खिलाफ हुआ — तो वारंटी और इंश्योरेंस कवरेज पर विवाद उठ सकता है।

इंश्योरेंस और कवरेज पर असर

सरकार का कहना है कि E20 का इंश्योरेंस पर असर नहीं पड़ेगा। हालांकि कई इंश्योरेंस पॉलिसियों में “ग़लत फ्यूल” से होने वाले नुकसान कवर नहीं होते। कुछ इंश्योरेंस प्रोवाइडरों ने शुरुआती बयानों के बाद अपने स्टेटमेंट्स डिलीट किये या बदल दिए — जिससे कन्फ्यूज़न और बढ़ गया।

सरकार किन फायदों का दावा करती है?

  • प्रदूषण में कमी: नीति आयोग और कुछ रिसर्च पेपर्स के मुताबिक इथेनॉल ब्लेंडिंग से ग्रीनहाउस गैस एमिशन घटते हैं।
  • आयात बिल में कमी: क्रूड ऑयल आयात कम होने से विदेशी मुद्रा की बचत। सरकार के हिसाब से 2014-2024 के बीच इथेनॉल ब्लेंडिंग से करोड़ों रुपये की बचत हुई है।
  • किसानों को फायदा: इथेनॉल प्लांट किसानों से गन्ना/मक्का आदि खरीदते हैं, जिससे किसानों की आमदनी बढ़ सकती है।

राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप और हित का टकराव

यहाँ बड़ा विवाद यह है कि इथेनॉल के प्रमोशन से किन लोगों को आर्थिक लाभ हुआ — और क्या यह नीति पब्लिक इंटरेस्ट के बजाय व्यक्तिगत हित में तो नहीं की गयी।

विशेषकर नितिन गडकरी के परिवार संबंधी कथित हितों पर चर्चा हुई — कहा जा रहा है कि उनके दो पुत्र इथेनॉल/शुगर क्षेत्र में सक्रिय हैं और कुछ कंपनियाँ उनका संबंध रखती हैं। पिछले वर्षों में कुछ कंपनियों की ग्रोथ और शेयर-प्राइस में तेज़ बढ़ोतरी की रिपोर्ट्स के कारण सोशल मीडिया और मीडिया में आरोप उभरे।

यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि आरोपों और तथ्यों के बीच अंतर समझना है — पर जो पब्लिक कन्फ्यूज़न और नाराज़गी है, वह भौतिक असर (माइलेज, रिप्लेसमेंट कॉस्ट) के कारण भी है।

ब्राजील मॉडल और भारत के बीच फर्क

ब्राजील का उदाहरण अक्सर दिया जाता है — वहाँ दशकों से इथेनॉल ब्लेंडिंग पर काम हुआ है और गाड़ियों को धीरे-धीरे इथेनॉल-फ्रेंडली बनाया गया। ब्राजील ने 1970 से शुरू कर के दशकों में कदम-दर-कदम E27 जैसी उच्च ब्लेंडिंग तक पहुँचा।

भारत में यह ट्रांजिशन अपेक्षाकृत तेज़ रहा — E10 से E20 तक कुछ ही सालों में जाना; जिस वजह से कई उपभोक्ता बिना विकल्प के दिक्कत महसूस कर रहे हैं।

निष्कर्ष: E20 Fuel in India

कुल मिला कर E20 फ्यूल एक लॉन्ग-टर्म में फायदेमंद रणनीति बन सकती है — प्रदूषण और आयात खर्च कम करने में सहायक। पर मुद्दा लागू करने की नीति, समयसीमा, उपभोक्ता-हित और ट्रांज़िशन-मेकैनिज्म का है।

सरकार को तीन बातें ध्यान में रखनी चाहिए थीं ताकि संकट नहीं बनता:

  1. लोगों को पर्याप्त समय देना — मूल 2030-डेडलाइन पर धीरे-धीरे ट्रांज़िशन।
  2. इथेनॉल से होने वाले लाभों में से कुछ उपभोक्ताओं को पास-ऑन करना (पेट्रोल की कीमतें घटाना)।
  3. उपभोक्ताओं को स्पष्ट विकल्प देना — 100% पेट्रोल या ब्लेंडेड पेट्रोल चुनने की आज़ादी।

आज की परिस्थिति में जहाँ कई उपभोक्ता आर्थिक और तकनीकी समस्याओं का सामना कर रहे हैं, वहाँ बेहतर इम्प्लिमेंटेशन, पारदर्शिता और कमजोरों के लिए संरक्षण नीतियाँ ज़रूरी हैं।

 

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